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Alok Singh
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Monday, December 8, 2008
Sunday, November 30, 2008
वेलकम टु सज्जनपुरः मल्टिप्लेक्स में महादेव

बॉलिवुड में श्याम बेनेगल की पहचान एक ऐसे फिल्म मेकर की रही है , जिसने सिनेमा को हमेशा नया आयाम दिया है। लीक से हटकर समाज में घटने वाली घटनाओं को सिल्वर स्क्रीन पर पेश करने के लिए मशहूर बेनेगल की यह फिल्म उनकी पिछली फिल्मों से बिल्कुल अलग है। इस फिल्म में उन्होंने शहर से दूर एक ऐसे गांव को दिखाया है , जहां शहरी चकाचौंध ने भले ही अपनी कुछ जगह बना ली हो , लेकिन यहां रहनेवालों की मानसिकता आज भी सदियों पुरानी है। यहां रहने वाले रिटायर्ड सूबेदार इसके खिलाफ हैं कि उसकी विधवा बहू फिर से अपनी जिंदगी शुरू करे। गांव का इकलौता पढ़ा-लिखा महादेव (श्रेयस तलपडे़) अपनी प्रेमिका कमला (अमृता राव) को चाहते हुए भी जब अपना नहीं बना पाता तो उसकी खुशियों के लिए अपनी जमीन बेच देता है। इस फिल्म में लंबे अर्से बाद आपको शहर से दूर एक गांव और वहां रहने वाले देखने को मिलेंगे। वर्ना मल्टिप्लेक्स कल्चर और कुछ नया और लीक से हटकर करने की बात कहकर ऐसी फिल्में बनने लगी हैं , जहां देश के किसी गांव की झलक दूर-दूर तक नहीं दिखती। ऐसा नहीं है कि बेनेगल ने अपनी पिछली फिल्मों की तर्ज पर इस फिल्म में कुछ नया न किया हो। इस फिल्म का हर पात्र कहीं न कहीं से समाज के किसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है तो वहीं अपने अलग अंदाज में उन्होंने विधवा विवाह , वोट हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले नेता आदि का फिल्मांकन किया है। लेकिन एक ख्याति प्राप्त डाइरेक्टर की फिल्म में डबल मीनिंग संवाद अखरते हैं।
एक विवाह ऐसा भी: एक अच्छी और शशक्त फिल्म

मल्टिप्लेक्स कल्चर और टीनएजर्स की पसंद की दुहाई देकर इन दिनों हर छोटा - बड़ा बैनर लीक से हटकर कुछ नया करने की दुहाई देते हुए चालू मसालों से भरपूर , सेक्स , ऐक्शन और थ्रिलर फिल्में बनाने में लगा है। असल में मोटी कमाई की चाह में बॉलिवुड को यंग जेनरेशन के पसंद की आड़ लेकर ऐसी फिल्में बनाने का मौका मिल गया है , जिसमें सभी बिकाऊ मसालों को फिट किया जा सके। ऐसे में राजश्री फिल्म्स के बैनर तले रिलीज़ हुई यह फिल्म उन गिनेचुने दर्शकों के लिए ठंडी हवा के एक झोंके की तरह है जो पारिवारिक मूल्यों और समाज में सिकुड़ते रिश्तों को सिल्वर स्क्रीन पर देखने की ख्वाहिश रखते हैं। करीब डेढ़ साल पहले इसी बैनर तले बनी फिल्म विवाह ने छोटे बड़े सभी सेंटरों पर अच्छा खासा बिज़नस किया। उस वक्त फिल्म के डाइरेक्टर सूरज बड़जात्या ने इस फिल्म की कहानी को यूपी के एक छोटे से कस्बे में घटी सच्ची घटना पर आधारित बताया था। एक विवाह ऐसा भी को इस फिल्म का सिक्वल माना जा रहा था लेकिन फिल्म देखकर साफ हो जाता है इसका विवाह से कोई लेनादेना नहीं है। हां , इस फिल्म को आप सत्तर के दशक में बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रही राखी , परीक्षित साहनी स्टारर तपस्या का रीमेक जरूर कह सकते हैं। फिल्म की कहानी चांदनी ( ईशा कोप्पिकर ) के इर्द गिर्द घूमती है। पिता ( आलोक नाथ ) की मौत के बाद छोटे भाई बहन को संभालने का दायित्व चांदनी पर आ जाता है। वह अपने हमसफर प्रेम ( सोनू सूद ) का साथ पाकर परिवार के प्रति अपना फर्ज निभाती है। राजश्री बैनर की लगभग हर फिल्म में सामाजिक मूल्यों के अलावा रीति रिवाजों को हमेशा प्राथमिकता दी गई है। ऐसे में पॉप म्यूजिक के शोर के बीच तेज रफ्तार से भागती हमारी यंग जेनरेशन शायद इस फिल्म की और रुख न करे , लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में एक विवाह ऐसा भी को निश्चित तौर से पसंद किया जाएगा। सवा दो घंटे की इस फिल्म में करीब 10 गाने हैं। हालांकि , ये कहानी की स्पीड को कहीं कहीं रोकते। इंटरवल से पहले चांदनी और प्रेम के बीच संगीत की रिहर्सल को बेवजह लंबा किया गया है। वहीं फैमिली के प्रति समर्पण को ज्यादा से ज्यादा दिखाने की चाह में फिल्म के कुछ दृश्य अति नाटकीय हो जाते हैं। बॉलिवुड में बतौर खल्लास गर्ल अपनी इमिज बनाने वाली ईशा कोप्पिकर इस बार सीधी - सादी लड़की के रोल में खूब जमी हैं। आलोक नाथ हमेशा की तरह इस बार भी एक आदर्श और बेबस पिता की भूमिका में नजर आए। रवींद्र जैन का संगीत भले ही यंग जेनरेशन की कसौटी पर खरा ना उतरे लेकिन कहानी की डिमांड पर सौ फीसदी खरा उतरता है।
ओए लकी, लकी ओए: सुपरचोर की दुनिया में एंट्री
फिल्म खोसला का घोसला के बाद 4 साल का लंबा इंतजार करवाकर यंग डाइरेक्टर दिबाकर बनर्जी अपनी नई फिल्म ओए लकी , लकी ओए के साथ दर्शकों के बीच उतर आए हैं। इस बार उनकी फिल्म दिल्ली और आसपास के इलाकों में रईसों के बंगलों में चोरियां करके करोड़पति बने दिल्ली के शातिर सुपर चोर बंटी की कहानी से काफी मिलती है। भले ही फिल्म के निर्माता इस बात को नकारते हों लेकिन देखते हुए आपके जहन में बंटी का ख्याल एक बार तो आ ही जाएगा। शायद , दिबाकर भी यही चाहते थे कि दर्शक उनके लकी की तुलना बंटी से करें , इसलिए उन्होंने इस फिल्म को दिल्ली की भीड़भाड़ वाली आउटडोर लोकेशन पर शूट किया है। राजधानी का बंटी महंगी कारों और रईसों वाली जिंदगी जीने के लिए चोरियां करता था , तो कुछ ऐसा ही हाल लकी ( अभय देओल ) का भी है। दिबाकर का लकी अपनी फैमिली को रईसोंवाले सारे ठाठ और प्रेमिका सोनल ( नीतू चंद्रा ) की हर ख्वाहिश को पूरा करने के लिए चोरियां करता है। इसी छोटी सी कहानी को दिबाकर ने दो घंटे की लाइट कॉमिडी फिल्म में पेश किया है। भले ही फिल्म की कहानी लकी की हो लेकिन पूरी फिल्म में तीन - तीन भूमिकाओं में नजर आए परेश रावल छाए हुए हैं। लकी के रफ - टफ और अपनी दुनिया में मस्त रहने वाले पापा के अलावा , परेश फुटपाथ पर अपनी अलग दुनिया चलाने वाले गोगा भाई और रईस क्लास के प्रतिनिधि मिस्टर हांडा की भूमिकाओं में सब पर भारी पड़े हैं। सोचा ना था , आहिस्ता - आहिस्ता और एक चालीस की लास्ट लोकल के बाद अभय देओल इस बार शातिर चोर की भूमिका में जमे है। बतौर डाइरेक्टर , दिबाकर ने फिल्म को कहीं भी सुस्त नहीं होने दिया। लेकिन बंटी की इस फैमिली में सोनल बनी नीतू चंद्रा बस शो पीस बनकर रह गई हैं।
सॉरी भाई: इस कहानी में है कुछ हटकर
बॉलिवुड में यंग डाइरेक्टर ऑनिर की पहचान उनकी पहली ही फिल्म माई ब्रदर निखिल से ऐसे मेकर की बनी , जो लीक से हटकर फिल्में बनाने का जोखिम उठाना जानते हैं। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर भले ही कामयाबी ना मिल पाई लेकिन फिल्म एक खास क्लास की कसौटी पर खरी उतरी। शायद यहीं वजह रही कि उन्हें अगली फिल्म बनाने में कुछ ज्यादा ही लंबा इंतजार करना पड़ा। अब अगर इस हफ्ते रिलीस हुई उनकी फिल्म सॉरी भाई की बात की जाए , तो इस बार भले ही वह नए और बोल्ड सब्जेक्ट के साथ दर्शकों के रूबरू हुए हैं , लेकिन उनकी पिछली फिल्म की छाप यहां साफ दिखाई देती है। फिल्म की कहानी में बहुत कुछ ऐसा है जो शायद नई सोच या फिर मल्टिप्लेक्स कल्चर की पसंद पर ही खरा उतर पाए। सॉरी भाई एक ऐसी लड़की आलिया ( चित्रांगदा सिंह ) की मनोदशा पेश करती है , जो दो भाइयों हर्ष ( संजय सूरी ) और सिद्धार्थ ( शरमन जोशी ) के बीच अपने सच्चे प्यार को तलाशती है। अपनी फैमिली से दूर मॉरीशस में बिजनेस संभाल रहे हर्ष और आलिया एक दूसरे से प्यार करते है और शादी का फैसला करते है। आलिया चाहती है कि उनकी शादी में हर्ष के पापा - मम्मी ( बोमन ईरानी और शबाना आजमी ) और भाई सिद्धार्थ ( शरमन जोशी ) आए। हर्ष की फैमिली के पहुंचने के बाद , आलिया को एहसास होता है कि हर्ष के छोटे भाई सिद्धार्थ में वह सभी खूबियां है जिन्हें वह अपने जीवन साथी में चाहती हैं। यहीं से कहानी एक ऐसा टर्न लेती है जिसे आज भी हमारा समाज सहन नहीं करता। करीब 5 साल पहले हजारों ख्वाहिशें ऐसी भी से अपनी पहचान बना चुकी चित्रांगदा सिंह इस फिल्म में छाई हुई हैं। फिल्म में बोमन और शबाना के बीच गजब की केमिस्ट्री दिखती है। मॉरीशस की खूबसूरत लोकेशन , कसी स्क्रिप्ट के दम पर फिल्म लीक से हटकर बनी फिल्में पसंद करने वाले दर्शकों को बांध सकती है।
आलोक सिंह ॥ सोर्स: न भा टा
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