Sunday, November 30, 2008

एक विवाह ऐसा भी: एक अच्छी और शशक्त फिल्म


मल्टिप्लेक्स कल्चर और टीनएजर्स की पसंद की दुहाई देकर इन दिनों हर छोटा - बड़ा बैनर लीक से हटकर कुछ नया करने की दुहाई देते हुए चालू मसालों से भरपूर , सेक्स , ऐक्शन और थ्रिलर फिल्में बनाने में लगा है। असल में मोटी कमाई की चाह में बॉलिवुड को यंग जेनरेशन के पसंद की आड़ लेकर ऐसी फिल्में बनाने का मौका मिल गया है , जिसमें सभी बिकाऊ मसालों को फिट किया जा सके। ऐसे में राजश्री फिल्म्स के बैनर तले रिलीज़ हुई यह फिल्म उन गिनेचुने दर्शकों के लिए ठंडी हवा के एक झोंके की तरह है जो पारिवारिक मूल्यों और समाज में सिकुड़ते रिश्तों को सिल्वर स्क्रीन पर देखने की ख्वाहिश रखते हैं। करीब डेढ़ साल पहले इसी बैनर तले बनी फिल्म विवाह ने छोटे बड़े सभी सेंटरों पर अच्छा खासा बिज़नस किया। उस वक्त फिल्म के डाइरेक्टर सूरज बड़जात्या ने इस फिल्म की कहानी को यूपी के एक छोटे से कस्बे में घटी सच्ची घटना पर आधारित बताया था। एक विवाह ऐसा भी को इस फिल्म का सिक्वल माना जा रहा था लेकिन फिल्म देखकर साफ हो जाता है इसका विवाह से कोई लेनादेना नहीं है। हां , इस फिल्म को आप सत्तर के दशक में बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रही राखी , परीक्षित साहनी स्टारर तपस्या का रीमेक जरूर कह सकते हैं। फिल्म की कहानी चांदनी ( ईशा कोप्पिकर ) के इर्द गिर्द घूमती है। पिता ( आलोक नाथ ) की मौत के बाद छोटे भाई बहन को संभालने का दायित्व चांदनी पर आ जाता है। वह अपने हमसफर प्रेम ( सोनू सूद ) का साथ पाकर परिवार के प्रति अपना फर्ज निभाती है। राजश्री बैनर की लगभग हर फिल्म में सामाजिक मूल्यों के अलावा रीति रिवाजों को हमेशा प्राथमिकता दी गई है। ऐसे में पॉप म्यूजिक के शोर के बीच तेज रफ्तार से भागती हमारी यंग जेनरेशन शायद इस फिल्म की और रुख न करे , लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में एक विवाह ऐसा भी को निश्चित तौर से पसंद किया जाएगा। सवा दो घंटे की इस फिल्म में करीब 10 गाने हैं। हालांकि , ये कहानी की स्पीड को कहीं कहीं रोकते। इंटरवल से पहले चांदनी और प्रेम के बीच संगीत की रिहर्सल को बेवजह लंबा किया गया है। वहीं फैमिली के प्रति समर्पण को ज्यादा से ज्यादा दिखाने की चाह में फिल्म के कुछ दृश्य अति नाटकीय हो जाते हैं। बॉलिवुड में बतौर खल्लास गर्ल अपनी इमिज बनाने वाली ईशा कोप्पिकर इस बार सीधी - सादी लड़की के रोल में खूब जमी हैं। आलोक नाथ हमेशा की तरह इस बार भी एक आदर्श और बेबस पिता की भूमिका में नजर आए। रवींद्र जैन का संगीत भले ही यंग जेनरेशन की कसौटी पर खरा ना उतरे लेकिन कहानी की डिमांड पर सौ फीसदी खरा उतरता है।

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