भोजपुरी क्षेत्र के लोगों का संस्कृति, संस्कृत और राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति अतुलनीय प्रेम ही हमारी अपनी बोली/भाषा भोजपुरी में ग्रन्थ रचना के मार्ग की सबसेबड़ीबाधा बनगया,परिणामस्वरूप हमारी अपनी भोजपुरी, देश-विदेश में सबसे लोकप्रिय होते हुए भी मात्र लोक संस्कृति, हमारी भावनाओं और हमारे सांस्कृतिक मंगलगीतों तक में ही सिमट कर रह गई, हमारे स्वार्थी, सत्तालोलुप नेताओं की उपेक्षा और लोंगो के हीन भावना से ग्रसित होने के कारण अपनी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापकता के बावजूद वह अपने ही देश में उपेक्षित होकर रह गई है । रही सही कमी भोजपुरी फिल्मीनग्नता की संक्रामकता ने पूरी कर दी।
मैं अगले अंकों में भोजपुरी गीतों की विविधता की झलकियां प्रस्तुत करने का प्रयास करूॅगा। तब तक एक छोटी सी सोहर की प्रस्तुति का आनन्द लीजिए
ललनाकॅहवाजनमलेंगनेसजीतीनों घरवासोहरहो।।
अजुधाजनमलेंराजाराम,त गोकुलाकन्हैयाजीनुहो।।
ललनाकासीमेंजनमलेंगनेसजी,तीनोघरवासोहरहो।
केइजेलुटावेलाअन-धनसोनवा ,केइधेनुगइयानुहो।।
के इ जे लुटावे झोरी भाॅगि,त लोग बउराइ गइलें हो।
दसरथलुटावेलेंअनधनसोनवात,नंद धेनुगइयानुहो।।
ललनासिवजीलुटावेंझोरीभाॅगि,तलोगबउरार्इगइलेंहो
ललनातीनोंघरवाबाजेलाबधावअंगगनवाउठेसोहरहो।
साभार - अजीत जी
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